आज से शुरू होगी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, जाने इस यात्रा के 10 अद्भुत तथ्य
उड़ीसा के विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आज से शुरू हो गयी है यह रथ यात्रा 12 दिन तक चलती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व की सबसे पुरानी धार्मिक यात्राओं में से एक है, जिसकी शुरुआत लगभग 12वीं शताब्दी में हुई थी।
सबसे प्राचीन यात्रा
साल में केवल एक बार भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मंदिर से बाहर निकलते हैं और आम लोगों को दर्शन देते हैं। इसे ‘गुंडिचा यात्रा’ कहा जाता है।
भगवान आते हैं बाहर
तीनों देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं —– जगन्नाथ जी का रथ: नन्दीघोष (16 पहिए)– बलभद्र जी का रथ: तालध्वज (14 पहिए)– सुभद्रा जी का रथ: दर्पदलन (12 पहिए)
तीन विशाल रथ
रथों का निर्माण हर साल नए सागौन और अन्य विशेष लकड़ियों से किया जाता है। पुराने रथों को नष्ट कर दिया जाता है।
हर साल बनते हैं नए रथ
रथ यात्रा श्रीमंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जहाँ भगवान 9 दिन तक विश्राम करते हैं।
गुंडिचा मंदिर तक यात्रा
पुरी के राजा "गजपति" इस उत्सव में ‘पहंडी यात्रा’ और ‘छेरा पहनरा’ (रथ की सफाई) करते हैं, यह दिखाने के लिए कि भगवान के सामने सभी बराबर हैं।
राजा भी सेवक
सुभद्रा देवी एकमात्र ऐसी देवी हैं जो बिना किसी पुरुष देवता के अकेले रथ पर यात्रा करती हैं।
अकेले यात्रा करने वाली एकमात्र देवी
भक्त रथ की रस्सी खींचते हैं, और ऐसा माना जाता है कि इससे जीवन के पाप कट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रथ खींचना पुण्य का कार्य
इस उत्सव में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख से अधिक भक्त पुरी में एकत्र होते हैं
लाखों लोग होते हैं शामिल
अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया और अन्य देशों में भी जगन्नाथ रथ यात्रा मनाई जाती है, विशेषकर ISKCON संस्था के माध्यम से।